सोमवार, मार्च 12, 2012

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान- हरे वन और वन्य जन्तुओं का प्रदेश

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान का नाम सुनते ही जेहन में एक चित्र सा उभर आता है जिसमें चारों ओर ऊंचे ऊंचे वृक्ष, लहराती घास और एक-दूसरे से गुंथी सघन झाडियां नजर आती हैं। नीलगिरि की नीली नीली पहाडियां और उनके बीच में कल कल का निनाद करते नदी नाले बह रहे होते हैं। इस वैविध्यपूर्ण जड-जगत को वन्य प्राणियों की गूंज और चहलकदमी और भी जीवन्त बना देती है। 

एक सा लगते हुए भी हर जंगल का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान का भी अपना एक खास व्यक्तित्व है जो वन्य पर्यटन की असीम सम्भावनाओं को समेटे हुए है। यहां चंदन, टीक और रोजवुड जैसी प्रजातियों के पेड हैं और बांस के कुंजों की भरमार है। प्रकृति की यह सघनता वन्य प्राणियों के फलने-फूलने के लिये स्वर्ग के समान है। 

बांदीपुर देश की बाघ परियोजनाओं में से एक है। यह कर्नाटक के दक्षिणी छोर पर स्थित प्राचीन अभयारण्य है। मैसूर के रियासती दौर में 1931 में तत्कालीन महाराजा मैसूर ने यहां के समृद्ध वन्य जीवन से प्रभावित होकर इस अभयारण्य की स्थापना की थी। स्वतंत्रता के पश्चात इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। बांदीपुर कर्नाटक का पहला और सबसे बडा राष्ट्रीय उद्यान है। यह 874.20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।

कब जायें: पर्यटन प्रेमियों के लिये बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान सितम्बर से अप्रैल तक खुला रहता है और इस पूरे सीजन में यह देखने योग्य है। फिर भी वर्षा के बाद यानी सितम्बर से नवम्बर तक यह विशेष रूप से दर्शनीय हो जाता है। वर्षा के बाद हरीतिमा कई गुना बढ जाती है और मेघ रहित आकाश काफी नीला लगने लगता है। 

दिसम्बर से फरवरी के मध्य यहां सर्दी होती है। इस मौसम में हल्के गर्म कपडों की जरुरत पडती है। वसन्त के मौसम का भी अपना आनन्द है, जब जंगली फूलों की खुशबू से जंगल और जानवर मस्ती में झूमने लगते हैं। वृक्षों पर नई नई कोंपलें और फूल सजने लगते हैं जिससे सारा जंगल कभी हल्का गुलाबी, थोडा बैंगनी और कुछ कुछ नीला नजर आने लगता है। ऐसे खुशगवार मौसम में बांदीपुर की धरती स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति प्रदान करती है। 

कैसे जायें: निकटतम हवाई अड्डा बंगलुरू है, जो हैदराबाद, दिल्ली, चेन्नई, मदुरई, तिरुअनन्तपुरम, कोयम्बटूर, कोच्चि, मंगलौर, गोवा, पुणे और मुम्बई की वायुसेवा से जुडा है। निकटतम रेलवे स्टेशन चामराजनगर यहां से 53 किलोमीटर दूर है। वहां से बांदीपुर का सफर सडक मार्ग से तय किया जा सकता है। बांदीपुर स्टेट हाइवे से जुडा है। यहां दक्षिण भारत के सभी प्रमुख नगरों से सडक परिवहन के द्वारा पहुंचा जा सकता है। 

प्रमुख नगरों से दूरी: बंगलुरू 220 किलोमीटर, मैसूर 80 किलोमीटर, ऊटी 82 किलोमीटर, कोयम्बटूर 187 किलोमीटर, चेन्नई 569 किलोमीटर। 

कहां ठहरें: बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के आवास के लिये वन विश्राम गृह और कॉटेज की उचित व्यवस्था है। इसके लिये चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन अथवा फील्ड डाइरेक्टर प्रोजेक्ट टाइगर कार्यालय से अग्रिम आरक्षण करा लेना सुविधाजनक रहता है। 

क्या देखे: बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान अपने अंचल में कई प्रकार के पशु-पक्षियों को सहेजे हुए है। वनराज बाघ आकर्षण का केन्द्र है। बाघ के अलावा यहां तेंदुए भी हैं पर इनका दर्शन बडा ही दुर्लभ है। यहां हाथियों के कई जत्थे हैं, जो यत्र-तत्र भटकते हुए अक्सर पर्यटकों के सामने आ जाते हैं किंतु मनुष्य की दखलअंदाजी उन्हें जरा भी पसन्द नहीं है। पर्यटकों को हाथियों से दूर ही रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि कई बार ये उग्र और हिंसक हो जाते हैं। चीतल, सांभर, काकड और चौसिंगा के झुण्ड प्रायः सब कहीं नजर आ जाते हैं। जंगली कुत्ते ‘धौर’ झुण्डों में रहते हैं। ये बडे आक्रामक और खतरनाक होते हैं। 

बांदीपुर का एक और खास आकर्षण है- गौर। यह विशालकाय शाकाहारी जीव यहां घास के मैदानों में चरते समय बेहद चित्ताकर्षक लगते हैं। रीछ, गिलहरी, लंगूर और अन्य अनेक प्रकार के छोटे जीव-जन्तु सतर्कतापूर्वक विचरण करते हुए नजर आते हैं। यहां कई किस्मों की मछलियां, सांप और नागराज भी मिलते हैं। पक्षियों में तीतर, बटेर, पी-फाउल, धनेश और हरे कबूतर के साथ ही दर्जनों प्रकार के रंग बिरंगे पंछी हैं, जो पर्यटकों के स्वागत में हमेशा चहकते रहते हैं। 

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण के लिये सफारी वाहन, प्रशिक्षित हाथी और मार्ग निर्देशकों की अच्छी व्यवस्था है, जो आपके सफर को अविस्मरणीय बना देते हैं। 

लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित) 
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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